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Shloka: | ऋतुकालः च संप्राप्तः न च मे अस्ति पतिः वृतः । किम् प्राप्तम् किम् नु कर्तव्यम् किम् वा कृत्वा कृतम् भवेत् ॥ |
Reference: | 1.7.77.2.7(आदिपर्व>संभवपर्व>सप्तसप्ततितमोऽध्यायः (77)>ययात्युपाख्यान>श्लोक#7) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | सप्तसप्ततितमोऽध्यायः (77) |
Akhyana: | ययात्युपाख्यान |
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