Index Search for 'ऊर्ध्वं' |
Shloka: | जनमेजय उवाच - एवं हृतायां कृष्णायां प्राप्य क्लेशमनुत्तमम् । अतऊर्ध्वं नरव्याघ्राः किमकुर्वत पाण्डवाः ॥ |
Reference: | 3.42.257.0.1(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>सप्तपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#1) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | सप्तपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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