Index Search for 'ऊचुस्ततस्तेऽभ्युपगम्य' |
Shloka: | संप्राप्य सत्कारमतीव तेभ्यः प्रोवाच कस्य प्रथिताः स्थ सौम्याः ।ऊचुस्ततस्तेऽभ्युपगम्य सर्वे धनं तवेदं विहितं सुतस्य ॥ |
Reference: | 3.33.113.0.17(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः (113)>श्लोक#17) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | त्रयोदशाधिकशततमोऽध्यायः (113) |
Akhyana: | |
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