Index Search for 'इह' |
Shloka: | यत्त्वद्य मे व्यवसितं तच्छृणुध्वं नरर्षभाः ।इह प्रायमुपासिष्ये यूयं व्रजत वै गृहान् । भ्रातरश्चैव मे सर्वे प्रयान्त्वद्य पुरं प्रति ॥ |
Reference: | 3.39.238.0.10(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>घोषयात्रापर्व>अष्टत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#10) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | घोषयात्रापर्व |
Adhyaya: | अष्टत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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