Index Search for 'इवोत्थितः' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच - उपलभ्य ततः संज्ञां सुखसुप्तइवोत्थितः । दिशः सर्वा वनान्तांश्च निरीक्ष्योवाच सत्यवान् ॥ |
Reference: | 3.42.281.0.66(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#66) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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