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Shloka: | शुक्र उवाच - संसिद्धरूपः असि बृहस्पतेः सुत यत् त्वाम् भक्तम् भजते देवयानी । विद्याम् इमाम् प्राप्नुहि जीवनीम् त्वम् न चेत्इन्द्रः कचरूपी त्वम् अद्य ॥ |
Reference: | 1.7.71.2.46(आदिपर्व>संभवपर्व>एकसप्ततितमोऽध्यायः (71)>ययात्युपाख्यान>श्लोक#46) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | एकसप्ततितमोऽध्यायः (71) |
Akhyana: | ययात्युपाख्यान |
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