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Shloka: | इत्येवं वानरेन्द्रास्ते समाजग्मुः सहस्रशः । दिशस्तिस्रो विचित्याथ न तु ये दक्षिणां गताः ॥ |
Reference: | 3.42.266.0.22(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#22) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | षट्षष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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