Index Search for 'इत्युक्त्वा' |
Shloka: | मार्कण्डेय उवाच -इत्युक्त्वा विससर्जैनं परिष्वज्य महेष्वरः । विसर्जिते ततः स्कन्दे बभूवौत्पातिकं महत् । सहसैव महाराज देवान्सर्वान्प्रमोहयत् ॥ |
Reference: | 3.37.221.0.29(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#29) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|