Index Search for 'इत्यस्याः' |
Shloka: | वैशंपायन उवाच -इत्यस्याः प्रददौ कांस्यं सपिधानं हिरण्मयम् । सा शङ्कमाना रुदती दैवं शरणमीयुषी । प्रातिष्ठत सुराहारी कीचकस्य निवेशनम् ॥ |
Reference: | 4.46.14.0.17(विराटपर्व>कीचकवधपर्व>चतुर्दशोऽध्यायः (14)>श्लोक#17) |
Parva: | विराटपर्व |
Upaparva: | कीचकवधपर्व |
Adhyaya: | चतुर्दशोऽध्यायः (14) |
Akhyana: | |
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