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Shloka: | तेन राजन्न शक्नोमि तस्मिन्स्थातुं स्वआश्रमे । तं विनाशय राजेन्द्र लोकानां हितकाम्यया । लोकाः स्वस्था भवन्त्वद्य तस्मिन्विनिहतेऽसुरे ॥ |
Reference: | 3.37.193.0.23(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>त्रिनवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#23) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | त्रिनवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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