Index Search for 'आवां' |
Shloka: | अष्टावक्र उवाच - यज्ञं द्रष्टुं प्राप्तवन्तौ स्व तात कौतूहलं नौ बलवद्वै विवृद्धम् ।आवां प्राप्तावतिथी संप्रवेशं काङ्क्षावहे द्वारपते तवाज्ञाम् ॥ |
Reference: | 3.33.133.0.3(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>तीर्थयात्रापर्व>त्रयस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (133)>श्लोक#3) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | तीर्थयात्रापर्व |
Adhyaya: | त्रयस्त्रिंशदधिकशततमोऽध्यायः (133) |
Akhyana: | |
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