Index Search for 'आवहितः' |
Shloka: | देवयानि उवाच - निष्कृतिः मे अस्तु वा मा अस्तु शृणुषुआवहितः मम । शर्मिष्ठया यत् उक्ता अस्मि दुहित्रा वृषपर्वणः । सत्यम् किलैतत्सा प्राह दैत्यानामसि गायनः ॥ |
Reference: | 1.7.73.2.30(आदिपर्व>संभवपर्व>त्रिसप्ततितमोऽध्यायः (73)>ययात्युपाख्यान>श्लोक#30) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | संभवपर्व |
Adhyaya: | त्रिसप्ततितमोऽध्यायः (73) |
Akhyana: | ययात्युपाख्यान |
Search other sources: | search this word on other online resources
|