Index Search for 'आयुष्मान्वै' |
Shloka: | राजोवाच - इक्ष्वाकवः पश्यत मां गृहीतं न वै शक्नोम्येष शरं विमोक्तुम् । न चास्य कर्तुं नाशमभ्युत्सहामिआयुष्मान्वै जीवतु वामदेवः ॥ |
Reference: | 3.37.190.0.77(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>नवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#77) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | नवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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