Index Search for 'आप्यायिता' |
Shloka: | सरस्वत्युवाच - श्रेष्ठानि यानि द्विपदां वरिष्ठ यज्ञेषु विद्वन्नुपपादयन्ति । तैरेवाहं संप्रवृद्धा भवामिआप्यायिता रूपवती च विप्र ॥ |
Reference: | 3.37.184.0.19(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#19) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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