Index Search for 'आत्मनः' |
Shloka: | विषमां च दशां प्राप्य देवान्गर्हति वै भृशम् ।आत्मनः कर्मदोषाणि न विजानात्यपण्डितः ॥ |
Reference: | 3.37.200.0.6(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>द्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#6) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | द्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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