Index Search for 'आतुरस्य' |
Shloka: | युधिष्ठिर उवाच - सार्थः प्रवसतो मित्रं भार्या मित्रं गृहे सतः ।आतुरस्य भिषङ्मित्रं दानं मित्रं मरिष्यतः ॥ |
Reference: | 3.44.297.0.45(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>आरणेयपर्व >सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#45) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | आरणेयपर्व |
Adhyaya: | सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|