Index Search for 'आतुरस्य' |
Shloka: | यक्ष उवाच - किं स्वित्प्रवसतो मित्रं किं स्विन्मित्रं गृहे सतः ।आतुरस्य च किं मित्रं किं स्विन्मित्रं मरिष्यतः ॥ |
Reference: | 3.44.297.0.44(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>आरणेयपर्व >सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#44) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | आरणेयपर्व |
Adhyaya: | सप्तनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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