Index Search for 'आचक्ष्व' |
Shloka: | वयं हि मानं तव वर्धयन्तः पृच्छाम भद्रे प्रभवं प्रभुं च ।आचक्ष्व बन्धूंश्च पतिं कुलं च तत्त्वेन यच्चेह करोषि कार्यम् ॥ |
Reference: | 3.42.249.0.5(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>द्रौपदीहरणपर्व>एकोनपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः>श्लोक#5) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | द्रौपदीहरणपर्व |
Adhyaya: | एकोनपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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