Index Search for 'आचक्ष्व' |
Shloka: | तार्क्ष्य उवाच - इदं श्रेयः परमं मन्यमाना व्यायच्छन्ते मुनयः संप्रतीताः ।आचक्ष्व मे तं परमं विशोकं मोक्षं परं यं प्रविशन्ति धीराः ॥ |
Reference: | 3.37.184.0.21(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#21) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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