Index Search for 'आचक्ष्व' |
Shloka: | तार्क्ष्य उवाच - किं नु श्रेयः पुरुषस्येह भद्रे कथं कुर्वन्न च्यवते स्वधर्मात् ।आचक्ष्व मे चारुसर्वाङ्गि सर्वं त्वयानुशिष्टो न च्यवेयं स्वधर्मात् ॥ |
Reference: | 3.37.184.0.2(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#2) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | चतुरशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
Search other sources: | search this word on other online resources
|