Index Search for 'आगमाननतिक्रम्य' |
Shloka: | धर्मं चरामि सुश्रोणि न धर्मफलकारणात् ।आगमाननतिक्रम्य सतां वृत्तमवेक्ष्य च । धर्म एव मनः कृष्णे स्वभावाच्चैव मे धृतम् ॥ |
Reference: | 3.31.32.0.4(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>कैरातपर्व>द्वात्रिंशोऽध्यायः (32)>श्लोक#4) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | कैरातपर्व |
Adhyaya: | द्वात्रिंशोऽध्यायः (32) |
Akhyana: | |
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