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Shloka: | आख्यानम् तद् इदम् अनुत्तमम् महा अर्थम् विन्यस्तम् महत् इह पर्व संग्रहेण । श्रुत्वा आदौ भवति नृणाम् सुख अवगाहम् विस्तीर्णम् लवण जलम् यथा प्लवेन ॥ |
Reference: | 1.2.2.0.243(आदिपर्व>पर्वसंग्रहपर्व>द्वितीयोऽध्यायः (02)>श्लोक#243) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | पर्वसंग्रहपर्व |
Adhyaya: | द्वितीयोऽध्यायः (02) |
Akhyana: | |
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