Index Search for 'आकुलत्वात्तु' |
Shloka: | अपश्यत्तत्र गत्वा तं सूनामध्ये व्यवस्थितम् । मार्गमाहिषमांसानि विक्रीणन्तं तपस्विनम् ।आकुलत्वात्तु क्रेतॄणामेकान्ते संस्थितो द्विजः ॥ |
Reference: | 3.37.198.0.10(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>अष्टनवत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#10) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | अष्टनवत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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