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Shloka: | अवमन्य ततः कोपाद्भृगूंस्ताञ्शरणागतान् । निजघ्नुस्ते महेष्वासाः सर्वांस्तान्निशितैः शरैः ।आ गर्भादनुकृन्तन्तश्चेरुश्चैव वसुंधराम् ॥ |
Reference: | 1.11.169.6.18(आदिपर्व>चैत्ररथपर्व>एकोनसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः>और्वोपाख्यान>श्लोक#18) |
Parva: | आदिपर्व |
Upaparva: | चैत्ररथपर्व |
Adhyaya: | एकोनसप्तत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | और्वोपाख्यान |
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