Index Search for 'फलाहारः' |
Shloka: | यच्च किंचिन्मया लोके दृष्टं स्थावरजङ्गमम् । तदपश्यमहं सर्वं तस्य कुक्षौ महात्मनः ।फलाहारः प्रविचरन्कृत्स्नं जगदिदं तदा ॥ |
Reference: | 3.37.186.0.109(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>षडशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#109) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | षडशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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