Index Search for 'फलत्यथ' |
Shloka: | तत्रास्य स्वकृतं कर्म छायेवानुगतं सदा ।फलत्यथ सुखार्हो वा दुःखार्हो वापि जायते ॥ |
Reference: | 3.37.181.0.25(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>मार्कण्डेयसमस्यापर्व>एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#25) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | मार्कण्डेयसमस्यापर्व |
Adhyaya: | एकाशीत्यधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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