Index Search for 'फलं' |
Shloka: | अर्थधर्मावनादृत्य यः पापे कुरुते मनः । कर्मणां पार्थ पापानां सफलं विन्दते ध्रुवम् । पुनरेवं न कर्तव्यं मम चेदिच्छसि प्रियम् ॥ |
Reference: | 3.35.158.0.12(वनपर्व (आरण्यकपर्व)>यक्षयुद्धपर्व>अष्टपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः>श्लोक#12) |
Parva: | वनपर्व (आरण्यकपर्व) |
Upaparva: | यक्षयुद्धपर्व |
Adhyaya: | अष्टपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः |
Akhyana: | |
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