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Sutra: | मरीचिरुवाच--अग्निरेव शरीरे पित्तान्तर्गत: कुपिताकुपित:शुभाशुभानि करोति तद्यथा--पक्तिमपक्तिं दर्शनमदर्शनं मात्रामात्रत्वमूष्मण: प्रकृतिविकृतिवर्णौ र्शौर्यं भयं क्रोधं हर्षं मोहं प्रसादमित्येवमादीनि चापराणि द्वन्द्वानीति॥।। |
Reference: | 1.11.15.0(सूत्रस्थान>तिस्त्रैषणीयाध्याय>सूत्र#15.0) |
Sthana: | सूत्रस्थान |
Adhyaya: | तिस्त्रैषणीयाध्याय |
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