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Sutra: | तत्र भङ्गजातमनेकविधमनुसार्यमाणं द्विविधमेवोपपद्यते सन्धिमुक्तं काण्डभग्नं च। तत्रषड्विधं सन्धिमुक्तं द्वादशविधं काण्डभग्नं भवति॥ |
Reference: | 1.1.15.4.0(पूर्व>सूत्र>दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्>सूत्र#4.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम् |
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