Index Search for 'षट्सप्ततिर्नयनजा' |
Sutra: | नेत्रे विलम्बिनि विधिर्विहितः पुरस्तादुच्छिङ्घनं शिरसि वार्यवसेचान् स।षट्सप्ततिर्नयनजा य इमे प्रदिष्टा रोगा भवन्त्यमहतां महतां च तेभ्यः॥ |
Reference: | 1.1.19.8.0(पूर्व>सूत्र>व्रणितोपासनीयम्>सूत्र#8.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | व्रणितोपासनीयम् |
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