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Sutra: | तत्रफेनिलमरुणं कृष्णं परुषं तनुशीघ्रगमस्कन्दि च वातेन दु्ष्ट; नीलं पीतं हरितं श्यावं विस्रमनिष्टं पिपीलिकामक्षिकाणामस्कन्दि च पित्तेन दुष्ट; गैरिकोदकप्रतीकाशं स्निग्धं शीतलं बहलं पिच्छिलं चिरस्रावि मांसपेशीप्रभं च श्लेष्मदुष्टं; सर्वलक्षणसंयुक्तं काञ्जिकाभं विशेषतो दुर्गन्धि च सन्निपातदुष्टं; द्विदोषलिङ्गं संसृष्टम्॥ |
Reference: | 1.1.14.22.0(पूर्व>सूत्र>शोणितवर्णनीयम्>सूत्र#22.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शोणितवर्णनीयम् |
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