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Index Search for        'फेनमुद्वमति'
Sutra: अथ कुमार उद्विजते त्रस्यति रोदिति नष्टसंज्ञो भवति नखदशनैर्धात्रीमात्मानं च परिणुदति दन्तान् खादति कूजति जृम्भते भ्रुवौ विक्षिपत्यूर्ध्वं निरीक्षतेफेनमुद्वमति सन्दष्टौष्ठः क्रूरो भिन्नामवर्चा दीनार्तास्वरो निशि जागर्ति दुर्बलो म्लानाङ्गो मत्स्यच्छुछुन्दरिमत्कुणगन्धो यथा पुरा धात्र्याः स्तन्यमभिलषति तथा नाभिलषतीति सामान्येन ग्रहोपसृष्टलक्षणमुक्तं, विस्तरेणोत्तरे वक्ष्यामः॥
Reference:1.1.10.51.0(पूर्व>सूत्र>विशिखानुप्रवेशनीयम्>सूत्र#51.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:विशिखानुप्रवेशनीयम्
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