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Sutra: केचिदाचार्या ब्रुवते- द्रव्यं प्रधानं, कस्मात्? व्यवस्थितत्वात्, इह खलु द्रव्यं व्यवस्थितं न रसादयः, यथा- आमेफले ये रसादयस्ते पक्वे न सन्ति; नित्यत्वाच्च, नित्यं हि द्रव्यमनित्या गुणाः, यथा कल्कादिप्रविभागः, स एव सम्पन्नरसगन्धो व्यापन्नरसगन्धो वा भवति; स्वजात्यवस्थानाच्च, यथा हि पार्थिवं द्रव्यमन्यभावं न गच्छत्येवं शेषाणि; पञ्चेन्द्रियग्रहणाच्च, पञ्चभिरिन्द्रियैर्गृह्यते द्रव्यं न रसादयः; आश्रयत्वाच्च, द्रव्यमाश्रिता रसादयः, आरम्भसामर्थ्याच्च, द्रव्याश्रित आरम्भः, यथा- विदारिगन्धादिमाहृत्य संक्
Reference:1.1.40.3.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्>सूत्र#3.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्
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