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Tantra
 


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Index Search for        'त्रीण्यन्यानि'
Sutra: शलाकायन्त्राण्यपि नानाप्रकाराणि, नानाप्रयोजनानि, यथायोगपरिणाहदीर्घाणि च; तेषां गण्डूपदसर्पफणशरपुङ्खबडिशमुखे द्वे द्वे, एषणव्यूहनचालनाहरणार्थमुपदिश्येते; मसूरदलमात्रमुखे द्वे किंचिदानताग्रे स्रोतोगतशल्योद्धरणार्थं, षट् कार्पासकृतोष्णीषाणि, प्रमार्जनक्रियासु; त्रीणि दर्व्याकृतीनि खल्लमु्खानि, क्षारौषधप्रणिधानार्थं,त्रीण्यन्यानि जाम्बववदनानि, त्रीण्यङ्कुशवदनानि, षडेवाग्निकर्मस्वभिप्रेतानि; नासार्बुदहरणार्थमेकं कोलास्थिदलमात्रमुखं खल्लतीक्ष्णौष्ठं; अञ्जनार्थमेकं कलायपरिमण्डलमुभयतो मुकुलाग्रं; मूत्र
Reference:1.1.7.14.0(पूर्व>सूत्र>यन्त्रविधिम्>सूत्र#14.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:यन्त्रविधिम्
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