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Tantra
 


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Sutra: तत्र क्लीतकाश्वमारगुञ्जासुगन्धगर्गरककरघाटविद्युच्छिखाविजयानीत्यष्टौ मूलविषाणि; विषपत्रिकालम्बावरदारुकरम्भमहाकरम्भाणि पञ्च पत्रविषाणि; कुमुद्वतीवेणुकाकरम्भमहाकरम्भकर्कोटकरेणुकखद्योतकचर्मरीभगन्धासर्पघातिनन्दनसारपाकानीति द्वादश फलविषाणि; वेत्रकादम्बवल्लीजकरम्भमहाकरम्भाणि पञ्च पुष्पविषाणि; अन्त्रपाचककर्तरीयसौरीयककरघाटकरम्भनन्दननाराचकानि सप्त त्वक्सारनिर्यासविषाणि; कुमुदघ्नीस्नुहीजालक्षीरीणित्रीणि क्षीरविषाणि; फेणाश्म (भस्म) हरितालं च द्वे धातुविषे; कालकूटवत्सनाभसर्षपपालककर्दमकवैराटकमुस्तकशृङ्गीविषप
Reference:1.1.2.5.0(पूर्व>सूत्र>शिष्योपनयनीयम्>सूत्र#5.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शिष्योपनयनीयम्
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