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Sutra: | नखावघृष्टसञ्जाते शोफे भृङ्गरसो हितः। प्रतिसूर्यकदष्टानां सर्पदष्टवदाचरेत् ।त्रिविधा वृश्चिकाः प्रोक्ता मन्दमध्यमहाविषाः॥ |
Reference: | 1.1.8.56.0(पूर्व>सूत्र>शस्त्रावचारणीयम्>सूत्र#56.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शस्त्रावचारणीयम् |
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