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Tantra
 


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Index Search for        'त्राणावलम्बनं'
Sutra: तत्र सद्यःप्राणहराण्याग्नेयानि, अग्निगुणेष्वाशु क्षीणेषु क्षपयन्ति; कालान्तरप्राणहराणि सौम्याग्नेयानि, अग्निगुणेष्वाशु क्षीणेषु क्रमेण च सोमगुणेषु कालान्तरेण क्षपयन्ति; विशल्यप्राणहराणि वाय्व्यानि, शल्यमुखावरुद्धो यावदन्तर्वायुस्तिष्ठति तावज्जीवति, उद्धृतमात्रे तु शल्ये मर्मस्थानाश्रितो वायुर्निष्क्रामति, तस्मात् सशल्यो जीवत्युद्धृतशल्यो म्रियते (पाकात्पतितशल्यो वा जीवति) वैकल्यकराणि सौम्यानि, सोमो हि स्थिरत्वाच्छैत्याच्चत्राणावलम्बनं करोति; रुजाकराण्यग्निवायुगुणभूयिष्ठानि, विशेषतश्च रुजाकरौ,
Reference:1.1.6.17.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#17.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:ऋतुचर्यम्
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