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Sutra: | पित्तरक्तकृतो ज्ञेयस्त्वक्पाको ज्वरदाहवान्। कृष्णै: स्फोटै: सरक्तैश्च पिडकाभिश्च पीडितम्। यस्य वास्तुरुजश्चोग्राज्ञेयं तच्छोणिताबुर्दम्॥ |
Reference: | 1.1.14.13.0(पूर्व>सूत्र>शोणितवर्णनीयम्>सूत्र#13.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | शोणितवर्णनीयम् |
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