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Index Search for        'घृतवन्तमोदनमश्नीयात्'
Sutra: चक्षुःकामः प्राणकामो वा बीजकसाराग्निमन्थमूलं निष्क्वाथ्य माषप्रस्थं साधयेत्। तस्मिन् सिध्यति चित्रकमूलानामक्षमात्रं कल्कं दद्यादामलकरस चतुर्थभागं ततः स्विन्नमवतार्य सहस्रसंपाताभिहुतं कृत्वा शीतीभूतं मधुसर्पिभ्यां संसृज्योपयुञ्जीत यथाबलं यथासात्म्यं च लवणं परिहरन् भक्षयेत्। जीर्णे मुद्गामलकयूषेणालवणेनघृतवन्तमोदनमश्नीयात् पयसा वा मासत्रयम् एवमाभ्यां प्रयोगाभ्यां चक्षुः सौपर्णं भवत्यनल्पबलः स्त्रीषु चाक्षयो वर्षशतायुर्भवतीति॥
Reference:1.1.27.12.0(पूर्व>सूत्र>शल्यापनयनीयम्>सूत्र#12.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शल्यापनयनीयम्
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