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Index Search for        'घृतवन्तमोदनमश्नीयात्'
Sutra: विडङ्गतण्डुलानां द्रोणं पिष्टपचने पिष्टवदुपस्वेद्य विगतकषायं स्विन्नमवतार्य दृषदि पिष्टमायसे दृढे कुम्भे मधूदकोत्तरं प्रावृषि भस्मराशावन्तर्गृहे चतुरो मासान्निदध्यात् वर्षाविगमे चोद्धृत्यपसंस्कृतशरीरः सहस्रसंपाताभिहुतं कृत्वा प्रातः प्रातर्यथाबलमुपयुञ्जीत जीर्णे मुद्गामलकयूषेणालवणेनघृतवन्तमोदनमश्नीयात् पांशुशय्यायां शयीत। तस्य मासादूर्ध्वं सर्वाङ्गेभ्यः कृमयो निष्क्रामन्ति तानणुतैलेनाभ्यक्तस्य वंशविदलेनापहरेत् द्वितीये पिपीलिकास्तृतीये यूकास्तथैवापहरेत् चतुर्थे दन्तनखरोमाण्यवशीर्यन्ते पञ्चमे प्
Reference:1.1.27.8.0(पूर्व>सूत्र>शल्यापनयनीयम्>सूत्र#8.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शल्यापनयनीयम्
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