Index Search for 'घृतमुच्यते॥' |
Sutra: | हित: स्नेहविरेको वा बस्तय: पिच्छिलाश्च ये। पिच्छिलस्वरसे सिद्धं हितं चघृतमुच्यते॥ |
Reference: | 1.1.40.102.0(पूर्व>सूत्र>द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम्>सूत्र#102.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | द्रव्यरसगुणवीर्यविपाकविज्ञानीयम् |
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