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Sutra: | त्रिफलापटोलपिचुमन्दाटरूषककटुरोहिणीदुरालभात्रायमाणापर्पटकाश्चैतेषां द्विपलिकान् भागान् जलद्रोणे प्रक्षिप्य पादावशेषं कषायमादाय कल्कपेष्याणीमानि भेषजान्यर्धपलिकानि त्रायमाणामुस्तेन्द्रयवचन्दनकिराततिक्तानि पिप्पल्यश्चैतानिघृतप्रस्थे समावाप्य विपचेत्, एतत् तिक्तकं नाम सर्पिः कुष्ठविषमज्वरगुल्मार्शोग्रहणीदोषशोफपाण्डुरोगविसर्पषाण्ढ्यशमनमूर्ध्वजत्रुगतरोगघ्नं चेति॥ |
Reference: | 1.1.9.9.0(पूर्व>सूत्र>योग्यासूत्रीयम्>सूत्र#9.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | योग्यासूत्रीयम् |
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