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Index Search for        'घुर्घुरको'
Sutra: तत्र दर्वीकरेणविषेण त्वङ्नयननखदशनवदनमूत्रपुरीषदंशकृष्णत्वं रौक्ष्यं शिरसो गौरवं सन्धिवेदना कटीपृष्ठग्रीवादौर्बल्यं जृम्भणं वेपथुः स्वरावसादोघुर्घुरको जडता शुष्कोद्गारः कासश्वासौ हिक्का वायोरूर्ध्वगमनं शूलोद्वेष्टनं तृष्णा लालास्रावः फेनागमनं स्त्रोतोऽवरोधस्तास्ताश्च वातवेदना भवन्ति; मण्डलिविषेण त्वगादीनां पीतत्वं शीताभिलाषः परिधूपनं दाहस्तृष्णा मदो मूर्च्छा ज्वरः शोणितागमनमूर्ध्वमधश्च मांसानामवशातनं श्वयथुर्दंशकोथः पीतरूपदर्शनमाशुकोपस्तास्ताश्च पित्तवेदना भवन्ति; राजिमद्विषेण शुक्लत्वं त्वगादी
Reference:1.1.4.42.0(पूर्व>सूत्र>प्रभाषणीयम्>सूत्र#42.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:प्रभाषणीयम्
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