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Index Search for        'घुणोपहतकाष्ठवेणुनलनालीशु्ष्कालाबूमुखेष्वेष्यस्य;'
Sutra: तत्र पुष्पफलालाबूकालिन्दकत्रपुसैर्वारुककर्कारुकप्रभॄतिषु छेद्यविशेषान् दर्शयेत्, उत्कर्तनपरिकर्तनानि चोपदिशेत्; दृतिबस्तिप्रसेवकप्रभॄतिषूदकपङ्कपूर्णेषु भेद्ययोग्याम्; सरोम्णि चर्मण्यातते लेखस्य; मृतपशुसिरासूत्पलनालेषु च वेध्यस्यः,घुणोपहतकाष्ठवेणुनलनालीशु्ष्कालाबूमुखेष्वेष्यस्य; पनसबिम्बीफलमज्जमृतपशुदन्तेष्वाहार्यस्य; मधूच्छिष्टोपलिप्ते शाल्मलीफलके विस्राव्यस्य; सूक्ष्मघनवस्त्रान्तयोर्मृदुचर्मान्तयोश्च सीव्यस्य; पुस्तमयपुरुषाङ्गप्रत्यङ्गविशेषेषु बन्धनयोग्यां; मृदुषु मांसखण्डेष्वग्निक्षारयोग्याम्
Reference:1.1.9.4.0(पूर्व>सूत्र>योग्यासूत्रीयम्>सूत्र#4.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:योग्यासूत्रीयम्
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