Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'घट्यत'
Sutra: स यदा बाह्याभ्यन्तरैः क्रियाविशेषैर्न संभावितः प्रशमयितुं क्रियाविपर्याद्बहुत्वाद्वा दोषाणां तदा पाकाभिमुखो भवति। तस्यामस्य पच्यमानस्य पक्वस्य च लक्षणमुच्यमानमुपधारय। तत्र मन्दोष्मता त्वक्सवर्णता शीतशोफता स्थैर्यं मन्दवेदनताऽल्पशोफता चामलक्षणमुद्दिष्टं; सूचिभिरिव निस्तुद्यते, दश्यत इव पिपीलिकाभिस्ताभिश्च संसर्प्यत इव, छिद्यत इव शस्त्रेण, भिद्यत इव दण्डेन, पीड्यत इव पाणिना,घट्यत इव चाङ्गुल्या, दह्यते पच्यत इव चाग्निक्षाराभ्यामोषचोषपरीदाहाश्च भवन्ति; वृद्धिकविद्ध इव च स्थानासनशयनेषु न शान्तिमुपैत
Reference:1.1.17.5.0(पूर्व>सूत्र>आमपक्वैषणीयम्>सूत्र#5.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:आमपक्वैषणीयम्
Search other sources: search this word on other online resources