Index Search for 'खादिराङ्गारैरिति॥' |
Sutra: | तत्र तापस्वेदः पाणिकांस्यकन्दुककपालवालुकावस्त्रैः प्रयुज्यते शयानस्य चाङ्गतापो बहुशःखादिराङ्गारैरिति॥ |
Reference: | 1.1.32.4.0(पूर्व>सूत्र>स्वभावविप्रतिपत्तिम्>सूत्र#4.0) |
Tantra: | पूर्व |
Sthana: | सूत्र |
Adhyaya: | स्वभावविप्रतिपत्तिम् |
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