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Sutra: ऋतौ प्रथमदिवसात् प्रभृति ब्रह्मचारिणी दिवास्वप्नाञ्जनाश्रुपातस्नानानुलेपनाभ्यङ्गनखच्छेदनप्रधावनहसनकथनातिशब्दश्रवणावलेखनानिलायासान् परिहरेत् । किं कारणं ? दिवा स्वपन्त्या: स्वापशील:, अञ्जनादन्ध:, रोदनाद्विकृतदृष्टि:, स्नानानुलेपनाद्दु:खशील:, तैलाभ्यङ्गात् कुष्ठी, नखापकर्तनात् कुनखी, प्रधावनाच्चञ्चल:, हसनाच्छयावदन्तौष्ठतालुजिह्व:, प्रलापी चातिकथनात्, अतिशब्दश्रवणात् बधिर:, अवलेखनात्खलति:, मारुतायाससेवनादुन्मत्तो गर्भो भवतीत्येवमेतान् परिहरेत् । दर्भसंस्तरशायिनीं करतलशरावपर्णान्यतमभोजिनीं हविष्यं
Reference:1.1.2.25.0(पूर्व>सूत्र>शिष्योपनयनीयम्>सूत्र#25.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:शिष्योपनयनीयम्
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