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Tantra
 


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Index Search for        'खञ्जता'
Sutra: अत ऊर्ध्वं प्रत्येकशो मर्मस्थानानि व्याख्यास्यामः- तत्र पादस्याङ्गुष्ठाङ्गुल्योर्मध्ये क्षिप्रं नाम मर्म, तत्र विद्धस्याऽक्षेपकेण मरणं; मध्यमाङ्गुलीमनुपूर्वण मध्ये पादतलस्य तलहृदयं नाम, तत्रापि रुजाभिर्मरणं; क्षिप्रत्योपरिष्टादुभयतः कूर्चो नाम, तत्र पादस्य भ्रमणवेपने भवतः; गुल्फसन्धेरध उभयतः कूर्चशिरो नाम, तत्र रुजाशोफौ; पादजङ्घयोः सन्धाने गुल्फो नाम, तत्र रुजः स्तब्धपादताखञ्जता वा; पार्ष्णिं प्रति जङ्घामध्ये इन्द्रिबस्तिर्नाम, तत्र शोणितक्षयेण मरणं; जङ्घोर्वोः सन्धाने जानु नाम, तत्र खञ्जता; जा
Reference:1.1.6.25.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#25.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:ऋतुचर्यम्
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