Search Sushruta-Samhita (सुश्रुत-संहिता-अण्वेषण-पृष्ठ)     Susruta Samhit Home (आदि-पृष्ठ)           Site Home  (वेब-फलक-आदि-पृष्ठ)

DIRECT SEARCH(unicode Sanskrit)
  

ALPHABET SEARCH
                                 अं       लृ                                    
                                                            क्ष   त्र   ज्ञ


SEARCH BY CLASS
Tantra
 


Results
Index Search for        'ऊर्ध्वमतिवृद्धानां'
Sutra: अतऊर्ध्वमतिवृद्धानां दोषधातुमलानां लक्षणं वक्ष्यामः। वृद्धिः पुनरेषां स्वयोनिवर्धनात्युपसेवनाद् भवति। तत्र वातवृद्धौ वाक्पारुष्यं कार्श्यं कार्ष्ण्यं गात्रस्फुरणमुष्णकामिता निद्रानाशोऽल्पबलत्वं गाढवर्चस्वं च। पित्तवृद्धौ पीतावभासता संतापः शीतकामित्वमल्पनिद्रता मूर्च्छा बलहानिरिन्द्रियदौर्बल्यं पीतविण्मूत्रनेत्रत्वं च। श्लेष्मवृद्धौ शौक्ल्यं शैत्यं स्थैर्यं गौरवमवसादस्तन्द्रा निद्रा सन्धिविश्लेषश्च॥
Reference:1.1.15.17.0(पूर्व>सूत्र>दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्>सूत्र#17.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:दोषधातुमलक्षयवृद्धिविज्ञानीयम्
Search other sources: search this word on other online resources