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Index Search for        'ऊर्ध्वं'
Sutra: तत्र सक्थिमर्माणि क्षिप्रतलहृदयकूर्चकूर्चशिरोगुल्फेन्द्रबस्तिजान्वाण्यूर्वीलोहिताक्षाणि विटपं चेति, एतेनेतरत्सक्थि व्याख्यातम्। उदरोरसोस्तु गुदबस्तिनाभिहृदयस्तनमूलस्तनरोहितापलापान्यपस्तम्भौ चेति। पृष्ठमर्माणि तु कटीकतरुणकुकुन्दरनितम्बपार्श्वसन्धिबृहत्यंसफलकान्यंसौ चेति। बाहुमर्माणि तु क्षिप्रतलहृदयकूर्चकूर्चशिरोमणिबन्धेन्द्रबस्तिकूर्पराण्यूर्वीलोहिताक्षणि कक्षधरं चेति। एतेनेतरो बाहुर्व्याख्यातः। जत्रुणऊर्ध्वं चतस्रो धमन्योऽष्टौ मातृका द्वे कृकाटिके द्वे विधुरे द्वे फणे द्वावपाङ्गौ द्वावावर्तौ द
Reference:1.1.6.7.0(पूर्व>सूत्र>ऋतुचर्यम्>सूत्र#7.0)
Tantra:पूर्व
Sthana:सूत्र
Adhyaya:ऋतुचर्यम्
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